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कपास उत्पादन में गिरावट: भारत के किसानों के लिए बड़ी चुनौती

कपास उत्पादन में गिरावट

भारत कपास के गिरते उत्पादन के साथ एक नई चुनौती का सामना कर रहा है, जिसका प्रमुख कारण है पेक्टिनोफोरा गॉसीपिएला या पिंक बॉलवॉर्म के अत्यधिक प्रकोप का सामना करना। इस लेख में, हम इस मुद्दे को विस्तार से देखेंगे, जानेंगे कि यह क्यों हो रहा है और किस प्रकार से किसानों को इससे निपटना होगा।

पिंक बॉलवॉर्म की चुनौती:

पिंक बॉलवॉर्म (जिसे PBW भी कहा जाता है) के कारण कपास की फसल पर भारी प्रभाव पड़ रहा है। यह कीट कपास के पौधों को हानि पहुंचाता है, जिसके परिणामस्वरूप कपास की उत्पादन में कमी हो रही है। पीबीडब्ल्यू का प्रकोप बीटी कपास क्षेत्रों में बढ़ गया है और इसके परिणामस्वरूप किसानों को इससे निपटना हो रहा है।

पिंक बॉलवॉर्म के प्रभाव:

गुलाबी बॉलवॉर्म के प्रभावों को समझने के लिए हमें कपास की अंदरूनी संरचना को समझना महत्वपूर्ण है। कपास के लिंट (यानि फाइबर) का केवल 36% हिस्सा होता है, जो किसानों द्वारा काटा गया कच्चा बिना-गिरा हुआ कपास है। शेष बीज (62%) और अपशिष्ट (2%) होते हैं जो ओटाई के दौरान लिंट से अलग हो जाते हैं।

कपास की महत्वपूर्ण भूमिका:

कपास, जिसे बीटी (Bt) कपास भी कहा जाता है, भारतीय कृषि के लिए महत्वपूर्ण है। यह न केवल फाइबर उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि इससे कई और उत्पादों का निर्माण भी होता है, जैसे कि तेल और खाद्य पदार्थ।

कपास के बीज में तेल होता है, जो खाने पकाने और तलने में प्रयोग होता है। इसके बाद खाद्य के रूप में बचे अवशिष्ट कपास को पशुओं के लिए फीड के रूप में उपयोग किया जाता है, जिसमें प्रोटीन होता है।

बीटी क्रांति:

बीटी की उपलब्धता:

भारत में बीटी कपास की खेती 2002 से शुरू हुई थी, जब किसानों ने मिट्टी के जीवाणु ‘बैसिलस थुरिंजिएन्सिस’ को शामिल करके अनुकूलित किया। इसके बाद से बीटी कपास किसानों द्वारा बोई जाती है और इसके पौधों में गुलाबी बॉलवॉर्म के खिलाफ सुरक्षा प्रदान की जाती है।

बीटी क्रांति के प्रभाव:

बीटी कपास के उत्पादन में बड़ी वृद्धि दर्ज की गई है। 2000-01 से 2013-14 के बीच, भारत का कपास उत्पादन, लिंट के संदर्भ में 140 लाख से लगभग तीन गुना बढ़कर 170 किलोग्राम की 398 लाख गांठों का हो गया। इसके साथ ही तेल और खाद्य पदार्थ का उत्पादन भी बढ़ गया है, जिससे खाद्य तथा पशुधन के क्षेत्र में सुधार हुआ है।

पिंक बॉलवॉर्म के प्रकोप का कारण:

पिंक बॉलवॉर्म के प्रकोप का मुख्य कारण पेक्टिनोफोरा गॉसीपिएला कीट है, जिसे पिंक बॉलवॉर्म के नाम से भी जाना जाता है। यह कीट कपास के पौधों में हानि पहुंचाती है, जिससे कपास की फसल में कमी हो रही है। पिंक बॉलवॉर्म का प्रकोप बीटी कपास क्षेत्रों में बढ़ गया है और इसके परिणामस्वरूप किसानों को इससे निपटना हो रहा है।

पिंक बॉलवॉर्म के प्रकोप का प्रभाव: पिंक बॉलवॉर्म के प्रकोप के कारण कपास की फसल पर कई प्रकार के प्रभाव दिखाई देते हैं:

कपास के उत्पादन में कमी: पिंक बॉलवॉर्म के प्रकोप से कपास के उत्पादन में कमी हो रही है। इसके कारण किसानों को नुकसान हो रहा है और उनकी आर्थिक स्थिति पर बुरा असर पड़ रहा है।

बीज की गुणवत्ता में कमी: पिंक बॉलवॉर्म के प्रकोप के चलते कपास के बीजों की गुणवत्ता में भी कमी हो रही है। इससे बीजों की कीमत में वृद्धि हो रही है, जिससे किसानों को और भी परेशानी हो रही है।

आर्थिक हानि: कपास की फसल में पिंक बॉलवॉर्म के प्रकोप के कारण किसानों को आर्थिक हानि हो रही है। यह किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन चुका है और इसका समाधान जरूरी है।

किसानों के लिए इस चुनौती से निपटने के तरीके:

पिंक बॉलवॉर्म के प्रकोप से निपटने के लिए किसानों को कुछ कदम उठाने और सहायता प्रदान करने की आवश्यकता है। निम्नलिखित तरीके किसानों के लिए सहायक हो सकते हैं:

बायो-इंटेग्रेटेड प्रबंधन: किसान बायो-इंटेग्रेटेड प्रबंधन (BIPM) की मदद से पिंक बॉलवॉर्म के प्रकोप को नियंत्रित कर सकते हैं। इसमें कीटनाशकों का उपयोग कम करके जैविक तरीकों से प्रकोप को नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता है।

संशोधित बीजों का उपयोग: किसानों को पिंक बॉलवॉर्म के प्रकोप से बचाव के लिए संशोधित कपास के बीजों का उपयोग करना चाहिए। यह फसल की सुरक्षा में सहायक हो सकता है।

समुदाय सहयोग: किसान समुदायों को मिलकर काम करना चाहिए और पिंक बॉलवॉर्म के प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए उपयुक्त उपायों को अपनाने का प्रयास करना चाहिए।

साक्षरता: किसानों को पिंक बॉलवॉर्म के प्रकोप के बारे में सचेत और साक्षर रहना चाहिए। उन्हें इस कीट के प्रकोप के साथ सामग्री के सही प्रयोग के बारे में जागरूक होना चाहिए।

भारतीय कपास की रूपरेखा और भविष्य का दृश्य:

भारतीय कपास खेती के लिए सुरक्षित और विकसित तरीकों की तलाश में हमें आगे बढ़ना होगा। किसानों को नए और प्रभावी तरीकों का उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है, जो कीटों के प्रति प्रतिरोध बढ़ा सकते हैं।

गुजरात का उदाहरण:

गुजरात एक ऐसा राज्य है जो गुलाबी बॉलवॉर्म के संक्रमण का सामना करने में सफल रहा है। वहां किसानों और कृषि विशेषज्ञों ने मिलकर गुलाबी बॉलवॉर्म के प्रति प्रतिरोध को बढ़ावा दिया है और इसे नियंत्रित करने के लिए प्रभावी तरीकों का उपयोग किया है।

निष्कर्ष

पिंक बॉलवॉर्म के प्रकोप का सामना करने के लिए किसानों को सजग और सक्रिय रहना होगा। वे उपयुक्त उपायों का उपयोग करके इस चुनौती का समाधान निकाल सकते हैं और अपनी फसल की सुरक्षा को बनाए रख सकते हैं। इसके बावजूद, सरकार और कृषि विज्ञान संस्थानों को भी किसानों के साथ मिलकर उपायों को बढ़ावा देने का काम करना चाहिए।

इस लेख में हमने देखा कि पिंक बॉलवॉर्म के प्रकोप के कारण कपास की फसल पर किस प्रकार का प्रभाव पड़ रहा है और किसानों को इससे कैसे निपटना होगा। किसानों को सहायता मिलनी चाहिए ताकि वे इस चुनौती का समाधान निकाल सकें और अपनी फसल की सुरक्षा को बनाए रख सकें। इसके बावजूद, हमें यह भी याद रखना चाहिए कि बीटी कपास और किसानों की आर्थिक स्थिति के बीच एक संतुलन की आवश्यकता है ताकि हम सुनिश्चित कर सकें कि यह महत्वपूर्ण फसल हमारे लिए हमेशा उपलब्ध रहे।

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FAQs

भारत में कपास किसानों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है?

कीटों का संक्रमण: भारत में कपास की फसलें कीटों के प्रकोप से ग्रस्त हैं, जिससे फसल की उपज और गुणवत्ता कम हो सकती है।
कम उत्पादकता
सिंचाई का अभाव
उच्च इनपुट लागत
मानसून पर निर्भरता
किसान कर्ज
बाज़ार पहुंच का अभाव

भारत में कपास की उत्पादकता कम होने के कारण किसानों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है?

भारत की प्रति हेक्टेयर कपास उत्पादकता अन्य प्रमुख कपास उत्पादक देशों की तुलना में कम है। इसका मुख्य कारण पुरानी कृषि पद्धतियों का उपयोग, अपर्याप्त सिंचाई सुविधाएं और खराब बीज गुणवत्ता है।