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संधि विच्छेद क्या है? हिंदी व्याकरण में संधि विच्छेद की अवधारणा

“संधि विच्छेद” एक भाषा विज्ञान की महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो भाषा के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह एक विधि है जिसमें दो या दो से अधिक शब्दों को मिलाकर एक नया शब्द बनाया जाता है। इस प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य भाषा को सरल और सुगम बनाना है। इस लेख में हम संधि विच्छेद के अर्थ, प्रकार, और उपयोग पर विस्तार से विचार करेंगे।

संधि की परिभाषा

दो समीपवर्ती वर्णों के मेल से जो विकार (परिवर्तन) होता है वह सन्धि कहलाता है। सन्धि में पहले शब्द के अंतिम वर्ण और दूसरे शब्द के पहले वर्ण का मेल होता है। संधि के उदाहरण निम्नलिखित हैं:

  • सुन्दर + आकार = सुन्दराकार (यहाँ, “आ” का निम्न स्वर क्रमश: “अ” में बदल जाता है, और “द” का निम्न स्वर “ध” में बदल जाता है)
  • अनुप + जाति = अनुपजाति (यहाँ, “प” का उच्च स्वर “फ” में बदल जाता है)
  • अक्षर + ज्ञान = अक्षरज्ञान (यहाँ, “र” का उच्च स्वर “र्य” में बदल जाता है)
  • अग्नि + अधिष्ठान = अग्निअधिष्ठान (यहाँ, “अ” का निम्न स्वर “आ” में बदल जाता है)
  • आदि + उत्पत्ति = आदिउत्पत्ति (यहाँ, “इ” का निम्न स्वर “ए” में बदल जाता है)

ये उदाहरण दर्शाते हैं कि संधि कैसे वर्णों के अन्तर के परिवर्तन के माध्यम से नए शब्दों का निर्माण करती है।

संधि-विच्छेद की परिभाषा

दो वर्णों के मेल से होने वाले विकार को सन्धि कहते हैं। इस उत्पाद को समझकर वर्णों को अलग-अलग करते हुए अलग-अलग कर देना संधि विच्छेद है। इसे इस तरह भी समझा जा सकता है- दो शब्दों के मेल से बने शब्द को पुनः अलग-अलग करने को संधि विच्छेद कहते हैं। संधि-विच्छेद के उदाहरण निम्नलिखित हैं:

  • अकारीश्वर = अकार + ईश्वर
  • पारुत्तर = पार + उत्तर
  • वनुपनिवेश = वन + उपनिवेश
  • धनुपयोग = धन + उपयोग
  • उपेन्द्रादित्य = उपेन्द्र + आदित्य

संधि के प्रकार

वैज्ञानिक रूप से, संधि विच्छेद शब्दों के ध्वनिक या वर्णमाला में होने वाले बदलाव को कहा जाता है। यह बदलाव आमतौर पर दो शब्दों के मिलन से होता है, और इससे नए शब्दों का निर्माण होता है। संधि विच्छेद की अध्ययन के माध्यम से हम भाषा के संरचन में विभिन्न पहलुओं को समझ सकते हैं और भाषा के नियमों को समझने में सहायता प्राप्त कर सकते हैं। संधि के तीन प्रकार होते हैं।

  • स्वर संधि
  • व्यंजन संधि
  • विसर्ग संधि

स्वर संधि

स्वर संधि: जब दो स्वर एक-दूसरे के साथ मिलते हैं, तो स्वर संधि होती है। इसमें स्वरों के मेल का नियमित और अनियमित दोनों प्रकार होते हैं।

उदाहरण के लिए, “देव + ई = देवी” में “देव” और “ई” का मेल होकर “देवी” हो जाता है। यहाँ “वाय” और “ई” का मेल होकर “वाय” का उच्चारण “वे” हो जाता है। स्वर संधि के 5 भेद होते है।

स्वर संधि के भेद और उसके नियम
भेद नियम उदाहरण
दीर्घ संधि हस्व या दीर्घ ‘आ’, ‘इ’, ‘उ’, के पश्चात क्रमशः हस्व या दीर्घ ‘आ’, ‘इ’, ‘उ’ स्वर आएं तो दोनों को मिलाकर दीर्घ आ, ई, ऊ हो जाते है।
  • देवाधिवति (देव+अधिपति)
  • धर्मार्थ (धर्म+अर्थ)
  • गिरीश (गिरि+ईश)
  • गिरीन्द्र (गिर+इन्द्र)
  • गुणालय (गुण+आलय)
गुण संधि यदि अ और आ के बाद इ या ई, उ या ऊ तथा ऋ स्वर आए तो दोनों के मिलने के क्रमशः ए, ओ और अर हो जाते है।
  • जलोर्मि (जल+ऊर्मि)
  • खगेश (खग+ईश)
  • लोकोपयोग (लोक+उपयोग)
  • महोत्सव (महा+उत्सव)
  • राजऋषि (राज+ऋषि)
वृद्धि संधि अ या आ के बाद ए या ऐ आए तो ‘ऐ’ और ओ और औ आए तो औ हो जाता हो।
  • एकैक (एक+एक)
  • देवैश्वर्य (देव+ऐश्वर्य)
  • धर्मैक्य (धर्म+ऐक्य)
  • जलौस (जल+ओस)
  • वनौषधि (नव+औषधि)
यण संधि यदि इ, ई, उ, ऊ और ऋ के बाद भिन्न स्वर आये तो इ और ई का ‘य’ तथा उ और ऊ का व और का ऋ हो जाता है।
  • धात्विक (धातु+इक)
  • गुर्वौदन (गुरु+ओदन)
  • इत्यादि (इति+आदि)
  • मन्वन्तर (मनु+अन्तर)
  • नद्यर्पण (नदी+अर्पण)
अयादि संधि यदि ए, ऐ, ओ, औ, स्वरों का मेल दूसरे स्वरों से हो तो ए का अय, ऐ का आय, ओ का अव और औ का आव हो जाता है।
  • गुर्वोदार्य (गुरु+औदार्य)
  • मध्वोदन (मधु+ओदन)
  • नायक (नै+अक)
  • पवित्र (पो+इत्र)
  • सायक (सै+अक)

व्यंजन संधि

व्यंजन संधि, व्यंजन वर्णों के साथ स्वर वर्ण या स्वर वर्णों के साथ व्यंजन वर्णों के मिलने से जो विकार उत्पन्न होता है, उसे व्यंजन संधि कहा जाता है।

उदाहरण के लिए वायु + आकार = वायुआकार में, “वायु” शब्द में ‘य’ व्यंजन वर्ण के साथ ‘आ’ स्वर वर्ण का मिलने से “वायुआकार” शब्द बना है।

व्यंजन सन्धि के नियम
नियम उदाहरण
यदि स्पर्श व्यंजनों के प्रथम अक्षर अर्थात् क्, च्, ट्, त्, के आगे कोई स्वर अथवा किसी वर्ग का तीसरा या चौथा वर्ण अथवा य, र, ल, व आए तो क.च.ट. त. पके स्थान पर उसी वर्ग का तीसरा अक्षर अर्थात क के स्थान पर ग, च के स्थान पर ज, ट के स्थान पर ड, त के स्थान पर द और प के स्थान पर ‘ब’ हो जाता है;
  • दिक् + अम्बर = दिगम्बर
  • वाक् + ईश = वागीश
  • षट् + आनन = षडानन
  • सत् + आचार = सदाचार
यदि स्पर्श व्यंजनों के प्रथम अक्षर अर्थात् क्, च्, ट्, त्, प् के आगे कोई अनुनासिक व्यंजन आए तो उसके स्थान पर उसी वर्ग का पाँचवाँ अक्षर हो जाता है;
  • वाक् + मय = वाङ्मय
  • षट् + मास = षण्मास
  • उत् + मत्त = उन्मत्त
  • अप् + मय = अम्मय
जब किसी ह्रस्व या दीर्घ स्वर के आगे छ आता है तो छ के पहले च बढ़ जाता है;
  • परि + छेद = परिच्छेद
  • आ + छादन = आच्छादन
  • पद + छेद = पदच्छेद
  • गृह + छिद्र = गृहच्छिद्र
यदि म् के आगे कोई स्पर्श व्यंजन आए तो म् के स्थान पर उसी वर्ग का पाँचवाँ वर्ण हो जाता है;
  • सम् + चय = संचय
  • घम् + टा = घण्टा
  • सम् + तोष = सन्तोष
  • स्वयम् + भू = स्वयंभू
यदि म के आगे कोई अन्तस्थ या ऊष्म व्यंजन आए अर्थात् य, र, ल, व्, श्, ष्, स्, ह आए तो म अनुस्वार में बदल जाता है;
  • सम् + सार = संसार
  • सम् + योग = संयोग
  • स्वयम् + वर = स्वयंवर
  • सम् + रक्षा = संरक्षा
यदि त् और द् के आगे ज् या झ् आए तो ‘ज्’, ‘झ’, ‘ज’ में बदल जाते हैं;
  • उत् + ज्वल = उज्ज्वल
  • विपद् + जाल = विपज्जाल
  • सत् + जन = सज्जन
  • सत् + जाति = सज्जाति
यदि त्, द् के आगे श् आए तो त्, द् का च और श् का छ हो जाता है। यदि त्, द् के आगे ह आए तो त् का द् और ह का ध हो जाता है;
  • सत् + चित = सच्चित
  • तत् + शरीर = तच्छरीर
  • उत् + हार = उद्धार
  • तत् + हित = तद्धित
यदि च् या ज् के बाद न् आए तो न् के स्थान पर या याञ्जा हो जाता है;
  • यज् + न = यज्ञ
  • याच् + न = याजा
यदि अ, आ को छोड़कर किसी भी स्वर के आगे स् आता है तो बहुधा स् के स्थान पर ष् हो जाता है;
  • अभि + सेक = अभिषेक
  • वि + सम = विषम
  • नि + सेध = निषेध
  • सु + सुप्त = सुषुप्त
ष् के पश्चात् त या थ आने पर उसके स्थान पर क्रमश: ट और ठ हो जाता है;
  • आकृष् + त = आकृष्ट
  • तुष् + त = तुष्ट
  • पृष् + थ = पृष्ठ
  • षष् + थ = षष्ठ
ऋ, र, ष के बाद ‘न’ आए और इनके मध्य में कोई स्वर क वर्ग, प वर्ग, अनुस्वार य, व, ह में से कोई वर्ण आए तो ‘न’ = ‘ण’ हो जाता है;
  • भर + अन = भरण
  • भूष + अन = भूषण
  • परि + मान = परिमाण
  • ऋ + न = ऋण

विसर्ग संधि

विसर्ग संधि, विसर्ग के साथ और स्वर या व्यंजन वर्णों के मिलने से जो विकार उत्पन्न होता है, उसे विसर्ग संधि कहा जाता है।

उदाहरण के लिए मन: + अनुकूल = मनोनुकूल और नि: + पाप =निष्पाप

इसके प्रमुख नियम निम्नलिखित हैं-

विसर्ग सन्धि के नियम
नियम उदाहरण
यदि विसर्ग के आगे श, ष, स आए तो वह क्रमशः श्, ए, स्, में बदल जाता है
  • निः + सन्देह = निस्सन्देह
  • नि: + संग = निस्संग
  • निः + स्वार्थ = निस्स्वार्थ
यदि विसर्ग से पहले इ या उ हो और बाद में र आए तो विसर्ग का लोप हो जाएगा और इ तथा उ दीर्घ ई, ऊ में बदल जाएँगे
  • निः + रव = नीरव
  • निः + रोग = नीरोग
  • निः + रस = नीरस
यदि विसर्ग के बाद ‘च-छ’, ‘ट-ठ’ तथा ‘त-थ’ आए तो विसर्ग क्रमशः ‘श्’, ‘ष’, ‘स्’ में बदल जाते हैं
  • निः + तार = निस्तार
  • दु: + चरित्र = दुश्चरित्र
  • निः + छल = निश्छल
विसर्ग के बाद क, ख, प, फ रहने पर विसर्ग में कोई विकार (परिवर्तन) नहीं होता
  • प्रात: + काल = प्रात:काल
  • पयः + पान = पयःपान
यदि विसर्ग से पहले ‘अ’ या ‘आ’ को छोड़कर कोई स्वर हो और बाद में वर्ग के तृतीय, चतुर्थ और पंचम वर्ण अथवा य, र, ल, व में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग ‘र’ में बदल जाता है
  • निः + गुण = निर्गुण
  • नि: + आधार = निराधार
  • निः + धन = निर्धन
यदि विसर्ग से पहले अ, आ को छोड़कर कोई अन्य स्वर आए और बाद में कोई भी स्वर आए तो भी विसर्ग र् में बदल जाता है
  • निः + ईह = निरीह
  • निः + उपाय = निरुपाय
  • निः + अर्थक = निरर्थक
यदि विसर्ग से पहले अ आए और बाद में य, र, ल, व या ह आए तो विसर्ग का लोप हो जाता है तथा विसर्ग ‘ओ’ में बदल जाता है
  • मन: + रथ = मनोरथ
  • पुरः + हित = पुरोहित
  • मनः + रम = मनोरम
यदि विसर्ग से पहले इ या उ आए और बाद में क, ख, प, फ में से कोई वर्ण आए तो विसर्ग ‘ष्’ में बदल जाता है
  • नि: + करुण = निष्करुण
  • निः + पाप = निष्पाप
  • निः + कपट = निष्कपट

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FAQs

संधि कितने प्रकार की होती है?

संधि के तीन प्रकार होते हैं
1. स्वर संधि
2. व्यंजन संधि
3. विसर्ग संधि

संधि और समास क्या है?

संधि दो वर्णो के मेल से उत्पन्न विकार को कहते हैं जबकि समास दो पदों के मेल से बने शब्द होते हैं।

मनोनुकूल का संधि विच्छेद क्या है?

मनः + अनुकूल