SSC CGL Tier I Result Will be Out in October 2021
शिक्षक दिवस का इतिहास
शिक्षक दिवस का महत्व
शिक्षक एक छात्र के करियर के निर्माण में अपने दिल और दिमाग से लगे रहते हैं और उनकी मदद करते हैं। वे एक व्यक्ति के करियर को आकार देते हैं और उन्हें सही दिशा में मार्गदर्शन करते हैं। शिक्षक दिवस हम सभी के लिए अपने जीवन में न केवल शिक्षकों को धन्यवाद करने और आभार व्यक्त करने का एक अवसर है, बल्कि उन सभी को भी जिन्होंने हमें सही मार्गदर्शन दिया और हमारे जीवन को आगे बढ़ाने के लिए अपने निरंतर, निस्वार्थ और अनमोल प्रयासों को लगाया।
हमें शिक्षक दिवस क्यों मनाना चाहिए?
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का प्रारंभिक जीवन
- डॉ. एस राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरुत्तानी में एक तेलुगु ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
- उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा तिरुत्तानी प्राइमरी स्कूल में प्राप्त की और फिर तिरुपति के हरमन्सबर्ग इवेंजेलिकल लूथरन मिशन स्कूल(Hermannsburg Evangelical Lutheran Mission School) चले गए।
- 1906 में, डॉ. राधाकृष्णन ने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से दर्शनशास्त्र में मास्टर डिग्री(Masters degree in Philosophy) प्राप्त की।
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का करियर
- 1909 में उन्हें मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज के दर्शनशास्त्र विभाग में नियुक्त किया गया।
- 1918 में, वह मैसूर विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में शामिल हुए।
- 1921 में डॉ. राधाकृष्णन को कोलकाता विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया था।
- जून 1926 में, उन्होंने University of the British Empire के कांग्रेस में कोलकाता विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया था।
- सितंबर 1926 में, डॉ राधाकृष्णन ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय में इंटरनेशनल कॉलेज ऑफ फिलॉसफी(International College of Philosophy) का प्रतिनिधित्व किया।
- 1931 से 1936 तक, उन्होंने आंध्र विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में कार्य किया।
- 1936 में, उन्हें ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में ‘पूर्वी धर्म और नैतिकता के स्पैल्डिंग प्रोफेसर’ के रूप में नामित किया गया था और उन्हें ऑल सोल्स कॉलेज के फेलो के रूप में भी चुना गया था।
- 1939 में पं. मदन मोहन मालवीय ने डॉ. राधाकृष्णन को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति बनाया, जहाँ उन्होंने 1948 तक काम किया।
- 1947 में स्वतंत्रता के बाद, डॉ राधाकृष्णन ने यूनेस्को में देश का प्रतिनिधित्व किया और बाद में उन्होंने 1949-1952 तक सोवियत संघ में भारत के राजदूत के रूप में कार्य किया।
- 1952 में, उन्हें भारत के पहले उपराष्ट्रपति के रूप में चुना गया था।
- 1962 में डॉ राधाकृष्णन भारत के दूसरे राष्ट्रपति चुने गए।
डॉ राधाकृष्णन को मिला सम्मान
- डॉ राधाकृष्णन को शिक्षा के क्षेत्र में उनकी सेवा के लिए 1931 में किंग जॉर्ज पंचम ने knighted की उपाधि दी थी।
- उन्हें 1954 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
शिक्षकों को मिलने वाला राष्ट्रीय पुरस्कार
- भारत के राष्ट्रपति द्वारा हर साल 5 सितंबर (शिक्षक दिवस) को प्राथमिक, मध्य और माध्यमिक विद्यालयों में काम करने वाले मेधावी शिक्षकों को सम्मान दिया जाता है।
- यह पुरस्कार 1958 में शुरू किया गया था।
- पुरस्कार वर्ष 2001 से स्कूलों में समावेशी शिक्षा और नियमित स्कूलों में दिव्यांग बच्चों की शिक्षा को बढ़ावा देने वाले शिक्षकों के लिए ‘विशेष पुरस्कार’ की व्यवस्था की गई।
- ‘विशेष पुरस्कार’ की कुल संख्या 43 है।
- इस पुरस्कार में एक रजत पदक, प्रमाण पत्र और पुरस्कार राशि के रूप में 50,000/- रुपये दिए जाते हैं।