पर्यावरण प्रभाव आकलन(Environmental Impact Assessment), किसी भी प्रस्तावित परियोजना के पर्यावरणीय प्रभाव का मूल्यांकन करने की एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में, परियोजना जैसे कि खान, सिंचाई बांध, औद्योगिक इकाई, या अपशिष्ट उपचार संयंत्र के प्रभाव का वैज्ञानिक रूप से मूल्यांकन किया जाता है। इस मसौदा अधिसूचना को पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत केंद्र सरकार के पास निहित शक्तियों के तहत जारी किया जाता था ताकि ऐसे सभी उपाय किए जा सकें जो पर्यावरण की गुणवत्ता की रक्षा और सुधार कर सकें। इस लेख में, हम ईआईए के महत्व पर चर्चा करेंगे।
भारत में पर्यावरणीय प्रभाव आकलन का महत्त्व(Importance of Environmental Impact Assessment in India):
ईआईए अपेक्षाकृत नई योजना और निर्णय लेने वाला साधन है जिसे पहली बार संयुक्त राज्य अमेरिका में 1969 में राष्ट्रीय पर्यावरण नीति अधिनियम में निर्दिष्ट किया गया था।
ईआईए विकासात्मक परियोजनाओं के प्रतिकूल प्रभाव को खत्म करने या कम करने के लिए एक लागत प्रभावी तरीका उपलब्ध कराता है। यह विकास योजना में न्यूनीकरण जैसी रणनीतियों को अपनाने के लिए भी प्रोत्साहित करता है। ईआईए यह भी सुनिश्चित करता है कि किसी भी मामले में विकासात्मक योजना पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाए तथा परियोजना पारिस्थितिकी तंत्र के पुनर्जनन की क्षमता के दायरे में हो। यह प्रक्रिया पर्यावरण को सतत और पर्यावरणीय रूप से सुरक्षित विकास से जोड़ती है। ईआईए निर्णयकर्ताओं को विकास संबंधी परियोजनाओं के निहितार्थ से पहले पर्यावरण पर विकासात्मक गतिविधियों के प्रभाव की गणना करने में सक्षम बनाता है। पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन भी पर्यावरण की वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखने और उद्योगों में चल रही परियोजनाओं के प्रभाव के बारे में विवरण प्राप्त करने की का एक साधन है। कुल मिलाकर यह आकलन सुनिश्चित करेगा कि प्रारंभिकअवस्था में पर्यावरण के लिए क्या संभावित खतरा है; और ऐसे खतरों को रोकने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं जो पर्यावरण को नुकसान से बचा सकता है।